छत्तीसगढ़ प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन
शताब्दी समारोह (1918-2018)
अध्यक्ष ललित सुरजन का स्वागत भाषण
आदरणीय और प्रिय साथियो,
छत्तीसगढ़ प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन की ओर से शताब्दी समारोह में मैं आपका हार्दिक स्वागत करता हूं और आपके पधारने के लिए आभार भी व्यक्त करता हूं। हमें इस बात की खुशी है कि मध्यप्रदेश और विदर्भ के विभिन्न नगरों से अनेक साथियों ने यहां आने का कष्ट उठाया है। छत्तीसगढ़ के हमारे सदस्य और मित्र भी बड़ी संख्या में उपस्थित हुए हैं। मैं विशेष कर विदर्भ हिन्दी साहित्य सम्मेलन के उपाध्यक्ष वरिष्ठ पत्रकार श्री उमेश चौबे का अभिनंदन करता हूं। उनके आने से बासठ साल पहले टूटी एक कड़ी फिर से जुड़ गई है। भोपाल से म.प्र. हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष और मेरे अनुज पलाश के आने से छत्तीसगढ़ के उन सभी साथियों को भारी प्रसन्नता हुई है जो एक लंबे समय से सम्मेलन से जुड़े रहे हैं। आज के मुख्य अतिथि श्री प्रभाकर चौबे और समारोह के अध्यक्ष श्री महेन्द्र मिश्र हमारे संरक्षक सदस्य हैं। उनके मार्गदर्शन में ही यह दो दिवसीय आयोजन हो रहा है। देश और प्रदेश के प्रतिष्ठित कवि व लेखक रायगढ़ के श्री प्रभात त्रिपाठी भी विशिष्ट अतिथि के रूप में हमारा मनोबल बढ़ाने आए हैं। इन सबके साथ-साथ आपका मैं एक बार फिर अभिनंदन करता हूं। आज सम्मेलन के अठारह वर्ष तक अध्यक्ष रहे स्व. मायाराम सुरजन याने बाबूजी की 95वीं जयंती है। मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में सम्मेलन का जो रूप आज देख रहे हैं वह उनकी साधना का ही प्रतिफल है। हमारे वरिष्ठ संरक्षक और बाबूजी के साथ सम्मेलन में लंबे अरसे तक साथी रहे श्यामलाल जी चतुर्वेदी अस्वस्थता के कारण आज नहीं आ सके हैं लेकिन उन्होंने भी हमें अपने आशीर्वचन भेजे हैं।
साथियो, छत्तीसगढ़ में ज्ञात इतिहास व लिखित साक्ष्यों के आधार पर साहित्यिक वातावरण के निर्माण का समय पंद्रहवीं सदी में ठहरता है। संत कवि धर्मदास का जन्म 1415 में हुआ था। उनके कुछ समय बाद ही दूसरे संत कवि व दार्शनिक वल्लभाचार्य का जन्म राजिम के निकट चंपारण में सन् 1479 में हुआ था। उनका संस्कृत गीत मधुराष्टकम आपमें से बहुत लोगों ने सुना होगा। उन्होंने गीता पर सुबोधिनी टीका भी लिखी थी। इनके बाद गोपाल मिश्र, बाबू रेवाराम से लेकर संत कवि गुरु घासीदास तक के समय को हम छत्तीसगढ़ में साहित्य का भक्तिकाल निरूपित कर सकते हैं। इस दौरान निर्गुण व सगुण दोनों धाराओं में रचनाएं लिखी गईं।
आज जिस खड़ी बोली हिन्दी का हम प्रयोग करते हैं इसका प्रारंभ मोटे तौर पर द्विवेदी युग में माना जाना चाहिए। हिन्दी साहित्य में नई भावधारा का प्रारंभ भी यहीं से होता है। छत्तीसगढ़ में माधवराव सप्रे ने सन् 1900 में छत्तीसगढ़ मित्र का प्रकाशन प्रारंभ किया। लोचनप्रसाद पाण्डेय और मुकुटधर पाण्डेय ने भी इसी काल में अपनी लेखनी उठाई। मुकुटधर पाण्डेय को छायावाद का प्रथम कवि माना गया यद्यपि स्वयं उन्होंने यह श्रेय जयशंकर प्रसाद को दिया। छत्तीसगढ़ की उर्वरा भूमि में ही बिलासपुर जेल में कैदी स्वाधीनता सेनानी माखनलाल चतुर्वेदी ने पुष्प की अभिलाषा जैसी अमर कविता लिखी और सैय्यद अमीर अली मीर ने मैना तू बनवासिनी पड़ी पींजरे आन जैसे गीत की रचना की। पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, बल्देव प्रसाद मिश्र, सुंदरलाल त्रिपाठी, मावली प्रसाद श्रीवास्तव- ये सब द्विवेदी युग के ही रचनाकार थे। मुक्तिबोध के जीवन के अंतिम वर्ष छत्तीसगढ़ में बीते और बिलासपुर के श्रीकांत वर्मा की प्रतिभा को दिल्ली जाकर उत्स मिला। हरि ठाकुर द्वारा 1955-56 में संपादित प्रकाशित नए स्वर के साथ छत्तीसगढ़ में आधुनिक भावबोध से सम्पन्न रचनात्मक प्रतिभाओं ने अपनी पहचान कायम की। आज हम नारायण लाल परमार, सतीश चौबे आदि उस दौर के लेखकों का स्मरण करते हैं।
तत्कालीन मध्यप्रांत हिन्दी साहित्य सम्मेलन का पहला अधिवेशन 30 मार्च 1918 को इसी रायपुर की धरती पर आयोजित हुआ था। मालथौन, सागर में जन्मे बैरिस्टर प्यारेलाल मिश्र इसके अध्यक्ष थे। वे एक प्रसिद्ध वकील होने के साथ-साथ राजनेता और हिन्दी सेवक थे। उसके बाद से ही सम्मेलन की गतिविधियां छत्तीसगढ़ में लगातार चलती रहीं। रायपुर के बाद यथासमय पर राजनांदगांव, जगदलपुर, दुर्ग आदि स्थानों पर भी अधिवेशन हुए। 1972 की मई में राजनांदगांव में आयोजित अधिवेशन में बाबूजी सम्मेलन के महामंत्री निर्वाचित हुए और लतीफ घोंघी, त्रिभुवन पांडे और रवि श्रीवास्तव कार्यकारिणी के सदस्य बने। 1976 के विदिशा अधिवेशन में बाबूजी ने अध्यक्ष पद संभाला और सम्मेलन में नए उन्मेष का संचार हुआ।
सन् 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद नए प्रदेश में सम्मेलन के अध्यक्ष पद का भार साथियों ने मुझ पर डाला। मैं कह सकता हूं कि छत्तीसगढ़ सम्मेलन हर मायने में एक जनतांत्रिक संगठन है। हम सारे फैसले मिल-जुल कर लेते हैं। सम्मेलन के पदाधिकारी आत्मप्रचार से दूर रहकर अपना काम करते हैं और जब कभी आवश्यकता पड़ी है अपनी गिरह से पैसे लगाकर संस्था की गतिविधियों को आगे बढ़ाया हैं। हमारे तमाम कार्यक्रम जनोन्मुखी होते हैं। साहित्य के माध्यम से लोक शिक्षण को हम अपना बुनियादी कर्तव्य मानते हैं। हमारे साथी दूर-दूर के गांवों में जाकर कार्यक्रम करते हैं। युवा पीढ़ी से निरंतर संवाद हमारी गतिविधियों का प्रमुख अंग है। पिछले साल प्रेमचंद जयंती 31 जुलाई 2017 को हमने एक सौ पचास गांवों और 177 स्कूलों में कार्यक्रम किए। विगत 17 वर्षों से भारत कोकिला सरोजनी नायडू की जयंती पर गीत यामिनी का आयोजन कर हम कवि सम्मेलन के मंच की गरिमा पुर्नस्थापित करने का प्रयत्न करते हैं। सम्मेलन ने रचनाशीलता का समादर करने के लिए मायाराम सुरजन स्मृति लोकचेतना अलंकरण, ईश्वरी प्रसाद मिश्र स्मृति सप्तपर्णी सम्मान और राजनारायण मिश्र स्मृति पुनर्नवा पुरस्कार स्थापित किए हैं। सारे देश में महान साहित्यकार की जन्मशतियां भी शायद सबसे पहले हमने ही मनाई हैं। यशपाल, महादेवी, सुभद्रा कुमारी चौहान, अमृत लाल नागर, मुक्तिबोध, बलराज साहनी, ख्वाजा अहमद अब्बास इत्यादि मनीषियों को हमने श्रद्धासुमन अर्पित किए हैं।
मैंने छत्तीसगढ़ प्रदेश की साहित्यिक गतिविधियों और सम्मेलन की संक्षिप्त पृष्ठभूमि आपके सामने रखी है। आज और कल हम हिन्दी भाषा और साहित्य से जुड़े कुछ अहम मसलों पर बात करने जा रहे हैं। मैं उम्मीद करता हूं कि ये चर्चाएं लाभकारी सिद्ध होंगी। आपके आने से इस आयोजन को सार्थकता मिली है। मुझे आशा है कि आप यहां से सुखद स्मृतियां लेकर लौटेंगे। इस अल्प प्रवास में हमारे प्रबंध में कोई त्रुटि रह जाए और उससे आपको कष्ट पहुंचे तो उसे आप एक आत्मीय वातावरण में अन्यथा न लेंगे, यह विश्वास भी मैं करता हूं।
जय हिन्द। जय हिंदी।
रायपुर
29 मार्च, 2018,
अध्यक्ष
Website Designed By Vision Information Technology
Mobile No. 9893353242